गुरुवार, ७ एप्रिल, २०११

दत्ता म्हणे

गुरु कृपेची पहाट।
राम सर्वत्र चोखट।।
राम शरीरी बाहेरी।
राम राही चराचरी।।
राम चेईले निदेले।
रामे घरकुल केले।।
राम जळी स्थळी काष्ठी।
एक्या मुखी करा गोष्टी।।
दत्ता शरण शरण।
राम राजीव लोचन।।

   .......डी सिताराम

दत्ता म्हणे

एक
संत उदार उदार।
सारा आटवी संसार।।
दृश्यजगाचा नाश केला।
सत्य स्वरुपे पातला।।
मजविण कोणी नाही।
अनुभव हाचि येई।।
दत्ता म्हणे सांगो किती।
ऐशी संतांची महती।।

दोन
गुरु चरणांची शोभा।
भोळा राजा असे उभा।।
यांशी नाही मानपान।
दिले नामाचे साधन।।
नामरुप ऐक्य करी।
भवव्याधी दूर करी।।
दत्ता म्हणे माझा भाव।
गुरु जाहला स्वभाव।।

तीन
संतसमागमु धरावी आवडी।
जाशी पैलथडी भवसिंधु।।
संतांचे वचन अंतरी लक्षुनी।
आपुल्या जीवनी मुक्त होशी।।
संत हाची बाप संत हाची माय।
भक्तालागी सोय सर्वकाळी।।
संत उपदेश हाची गीता सार।
कैवल्याचा भार दत्ता म्हणे।।

चार
करा नामाचे साधन।
तिच गुरुसेवा जाण।।
नाम सुलभ सोपे रे।
नामे काळ थरथरे।।
करा बापांनो उच्चार।
तयाविण ना उद्धार।।
दत्ता म्हणे झालो धीट।
मार्ग पाहिला चोखट।।

पाच
नाम सोपे नाम सोपे।
सरतील विघ्ने पापे।।
नाही आणिक साधन।
देव पहायाशी जाण।।
हरिप्राप्तीचे लक्षण।
पांडुरंग नाम जाण।।
दत्ता म्हणे घेई नाम।
पुढे उभा घनःश्याम।।
   
      ...... डी सिताराम