आलो वैखरीच्या गावी। अहं सोहं बोध होई।।
वेगी जाऊ मध्यमात। ध्वनि ऐकु अनाहत।।
जीव शिव ऐक्य झाले। नाद पुढे प्रगटले।।
झाले देवाचे दर्शन। क्षीणदोष झाले मन।।
झणी पश्चंतीच्या गावा। घेऊ घडीचा विसावा।।
ओळखली परावाणी। साऱ्या विश्वाची जननी।।
पाहू सुखाचे सोहळे। नादब्रह्म पांगुळले।।
दत्ता गेला परेपार। स्वये झाला ब्रह्माकार।।
सहस्रदळावरी तेज प्रगटले।
स्वरूपी लावले आत्मत्त्वी।।
आत्मत्त्वपुढे आटले आटले।
ब्रह्मतेज ठाकले कौतुकाने।।
अहंब्रह्म भाव तोही मावळला।
सोहं पांगुळला अळुमाळु।।
दत्ता म्हणे संती ठेवा हा विश्वास।
कौतुके सायास करू नका।।
.....डीसिताराम
जीव शिव ऐक्य झाले। नाद पुढे प्रगटले।।
झाले देवाचे दर्शन। क्षीणदोष झाले मन।।
झणी पश्चंतीच्या गावा। घेऊ घडीचा विसावा।।
ओळखली परावाणी। साऱ्या विश्वाची जननी।।
पाहू सुखाचे सोहळे। नादब्रह्म पांगुळले।।
दत्ता गेला परेपार। स्वये झाला ब्रह्माकार।।
सहस्रदळावरी तेज प्रगटले।
स्वरूपी लावले आत्मत्त्वी।।
आत्मत्त्वपुढे आटले आटले।
ब्रह्मतेज ठाकले कौतुकाने।।
अहंब्रह्म भाव तोही मावळला।
सोहं पांगुळला अळुमाळु।।
दत्ता म्हणे संती ठेवा हा विश्वास।
कौतुके सायास करू नका।।
.....डीसिताराम