श्रीरामाचे श्लोक
वंदन करीतो गणेशा पुढती।
आरुढ व्हावे जी बसावे पुढती।।
वीणा हस्तकी वंदीली माय देवी।
जाण बाळक अज्ञानी कृपा व्हावी।।
मी मी करीत गर्वात वाया गेलो।
तू तू करीत स्वरुपी नष्ट झालो।।
धाव अनंता कृपा सर्वदा राहो।
आत्मस्वरुपी मलिन नाश पावो।।
बरा पावला मानव जन्म मना।
उगा सांडशी योगी केशव राणा।।
पाठी रामचंद्र उभा घनःश्याम।
त्याचेनी योगे पावशी सर्व काम।।
हनुमंत ज्याशी पुजी सर्वकाळी।
असा रघुविर स्मरे चंद्रमौळी।।
त्याशी स्मरीता बाणली वृत्ती शान्ति।
जीवा दाटली वास केली विश्रान्ति।।
नाना भोगुनी मानव जन्म झाला।
आधी रामनाम मग राम रुप।
त्याच्या स्वरुपी नाही मुळी माप।।
घडोघडी त्याशी स्मरीता स्वभावे।
सदा संकटी कळवळुनी धावे।।
सदा रामधुन मनात वसु दे।
कैवल्य आनंद ह्रदयी वसो दे।।
पाहतो पाहतो राम रघुविर।
राहतो राहतो सारे चराचर।।
नको रे स्मरु गतकाळ शोकाचा।
नाही मानवा भरवसा कशाचा।।
नाशिले आयुष्य नाही काळ वेळ।
सदा स्मरा वेगु भक्त प्रतिपाळ।।
तृषार्त मनी नाम वदत जावे।
सर्व कामना वेगी सांडी स्वभावे।।
दिनानाथ राम आहे एक बाणी।
सदा रक्षी मागे पुढे चक्रपाणी।।
सर्व जिवांचा एक आराम आहे।
करुणाकरा श्रीहरि तोषताहे।।
सदा भक्त रक्षी आघात सोसुनी।
रघुरायाचे पाय स्मरितो मनी।।
सकल जिवांचा करीतो सांभाळ।
तेजस्वी शोभतो वीर घननिळ।।
धर्म रक्षण्या धावी युगानुयुगी।
आत्मतेजस्वी शोभे श्रीमान योगी।।
नको मानवा राघवेविण आशा।
नास्तिक्ये होईल जीवन निराशा।।
उठ सांड वेगी आलस्य प्रमाद।
नको करु उगा कशाचा रे खेद।।
प्रभु रामराजा धावे भक्त काजा।
जीव शीव ऐक्य करी आत्मराजा।।
उन्मनी दाटली खळाळुन आली।
सकल कामला ह्रदयी निमाली।।
राम राम श्वासे रोम रोम बोले।
पाऊली पाऊली हनुमंत डोले।।
गर्जने हुंकारे घेई राम नाम।
असा हनुमंत शोभे पुर्णकाम।।
ज्याचा सखा राम सर्वदा आराम।
आत्मरती रमे पाही घनःश्याम।।
जानकी रमणा भक्तकल्पदृमा।
नमस्कार तुज कोटी कोटी रामा।।
तुझे गुण वर्णिँता जिव्हा थकेना।
पाऊली पाऊली जानकी रमणा।।
नाही आदि मध्य नाही त्याशी अंत।
सदा पाठीराखा उभा बळवंत।।
अरे दुःख भोग कोणाशी टळतो।
जे जे कर्म केले तैसेची भोगतो।।
पहा रे रावणा गर्वे नष्ट झाला।
अकस्मात लंकेसहित बुडाला।।
पित्यासाठी ज्याने वनवास केला।
असा रामचंद्र आदरे पुजीला।।
राक्षसा करुनी खंडण मंडन।
तेजे तळपे राम कैवल्य जाण।।
लक्षुनी पाही रे अंतरी आपणा।
दुर्गुणी भरला काम क्रोध नाना।।
रिक्त करुनिया गुणदोष सारे।
श्रीराम स्थापना वेगेशी करारे।।
राम नाम ध्याता एकरुप झाला।
मनाच्या गाभारा श्रीराम ठसला।।
विश्वस्वप्न वाटे स्थिति आरुढला।
ब्रह्म ऐक्य झाला स्वरुपी निमाला।।
राम नाम घेता कोण वाया गेला।
गर्वे अधांतरी उगाच सांडला।।
स्मरी सिताकांत कौसल्या नंदना।
अति आदरे पुजी वल्लभ राणा।।
रामनामी विश्व मृगजळ वाटे।
तुर्यातितवस्था अंतरी प्रगटे।।
हीच योगियांची ब्रहमानंद टाळी।
सदैव निमग्न राही चंद्रमौळी।।
प्रेमे स्नेहभरे पुजावे तयाशी।
अति आदरे तोषवावे प्रभुशी।।
सख्य जोडता भय लोपले मनी।
चराचरी त्याचा वास राही गुणी।।
चराचरी भक्त एकरुप झाला।
ब्रह्म ऐक्य रसी न्हाऊनी निघाला।।
विश्व त्याचे घर प्रभुचे निवास।
नाही भेद मनी अखंड स्थितीस।।
राम नाम घेता ब्रह्मरुप झाला।
जन्म मरणाचा फेरा चुकविला।।
ब्राह्मी दृढावली जीव शिव ऐक्य।
दृढ मना भासे एकची अनेक।।
जे जे काही एक गतिमान आहे।
ते ते श्रीराम वास करुनी आहे।।
घेई ध्यानी मनी परब्रह्म रुप।
सहज चिंतनी प्रगटे स्वरुप।।
अरे मानवा उठ संदेह सांडी।
रुप सगुण जोडी विकल्प मोडी।।
ज्ञानदृष्टी फाकवी जाणुन घेई।
वसले चैतन्य सर्व भूतां ठाई।।
आहे श्रीराम माझा कोदंडधारी।
काळाते थरारी भक्ता तारी तारी।।
त्याचे गुण गाता जिव्हा थकेना।
नमस्कार माझा तुज नारायणा।।
भटकु नको रे उगा तीर्थ नाना।
पडे बंधनी काम करी ठणाणा।।
स्मरी वेगु मनी भक्त प्रतिपाळा।
सदा संकटी धावे प्रभु कळाळा।।
ठायाची बैसोनी अंतरी लक्षी रे।
प्रभुची स्थापना ह्रदयी करारे।।
स्मरा सिताकांत त्याचे गुण गाता।
नमस्कार तुज कृपाळु अनंता।।
कृपाळु मवाळु स्नेहाळु दयाळु।
प्रभू रघुविर असे घननिळु।।
त्याशी स्मरीता बाणे वैराग्य जीवा।
हसत मुखाने करी ऐक्य शिवा।।
घाल उडी नको पाहू काळ वेळ।
प्रभू रामराजा रक्षी सर्व काळ।।
तया आठविता सख्य वाटे जीवा।
कृपाळु केशवा गोविंद माधवा।।
दत्ता झाला वेडा पायी मिठी केली।
मन पुष्पांजली प्रभुशी वाहिली।।
तेणे तुष्टला रे सखा घनःश्याम।
अति आदरे घडे जीवा आराम।।
..... डी सिताराम
वंदन करीतो गणेशा पुढती।
आरुढ व्हावे जी बसावे पुढती।।
वीणा हस्तकी वंदीली माय देवी।
जाण बाळक अज्ञानी कृपा व्हावी।।
मी मी करीत गर्वात वाया गेलो।
तू तू करीत स्वरुपी नष्ट झालो।।
धाव अनंता कृपा सर्वदा राहो।
आत्मस्वरुपी मलिन नाश पावो।।
बरा पावला मानव जन्म मना।
उगा सांडशी योगी केशव राणा।।
पाठी रामचंद्र उभा घनःश्याम।
त्याचेनी योगे पावशी सर्व काम।।
हनुमंत ज्याशी पुजी सर्वकाळी।
असा रघुविर स्मरे चंद्रमौळी।।
त्याशी स्मरीता बाणली वृत्ती शान्ति।
जीवा दाटली वास केली विश्रान्ति।।
नाना भोगुनी मानव जन्म झाला।
अहंता क्रोधात उगा शिणवला।।
घेई घेई रे राम नाम मुखाने।
तेणे पाविशी जन्मोजन्मी सुखाने।।
आधी रामनाम मग राम रुप।
त्याच्या स्वरुपी नाही मुळी माप।।
घडोघडी त्याशी स्मरीता स्वभावे।
सदा संकटी कळवळुनी धावे।।
सदा रामधुन मनात वसु दे।
कैवल्य आनंद ह्रदयी वसो दे।।
पाहतो पाहतो राम रघुविर।
राहतो राहतो सारे चराचर।।
नको रे स्मरु गतकाळ शोकाचा।
नाही मानवा भरवसा कशाचा।।
नाशिले आयुष्य नाही काळ वेळ।
सदा स्मरा वेगु भक्त प्रतिपाळ।।
तृषार्त मनी नाम वदत जावे।
सर्व कामना वेगी सांडी स्वभावे।।
दिनानाथ राम आहे एक बाणी।
सदा रक्षी मागे पुढे चक्रपाणी।।
सर्व जिवांचा एक आराम आहे।
करुणाकरा श्रीहरि तोषताहे।।
सदा भक्त रक्षी आघात सोसुनी।
रघुरायाचे पाय स्मरितो मनी।।
सकल जिवांचा करीतो सांभाळ।
तेजस्वी शोभतो वीर घननिळ।।
धर्म रक्षण्या धावी युगानुयुगी।
आत्मतेजस्वी शोभे श्रीमान योगी।।
नको मानवा राघवेविण आशा।
नास्तिक्ये होईल जीवन निराशा।।
उठ सांड वेगी आलस्य प्रमाद।
नको करु उगा कशाचा रे खेद।।
प्रभु रामराजा धावे भक्त काजा।
जीव शीव ऐक्य करी आत्मराजा।।
उन्मनी दाटली खळाळुन आली।
सकल कामला ह्रदयी निमाली।।
राम राम श्वासे रोम रोम बोले।
पाऊली पाऊली हनुमंत डोले।।
गर्जने हुंकारे घेई राम नाम।
असा हनुमंत शोभे पुर्णकाम।।
ज्याचा सखा राम सर्वदा आराम।
आत्मरती रमे पाही घनःश्याम।।
जानकी रमणा भक्तकल्पदृमा।
नमस्कार तुज कोटी कोटी रामा।।
तुझे गुण वर्णिँता जिव्हा थकेना।
पाऊली पाऊली जानकी रमणा।।
नाही आदि मध्य नाही त्याशी अंत।
सदा पाठीराखा उभा बळवंत।।
अरे दुःख भोग कोणाशी टळतो।
जे जे कर्म केले तैसेची भोगतो।।
पहा रे रावणा गर्वे नष्ट झाला।
अकस्मात लंकेसहित बुडाला।।
पित्यासाठी ज्याने वनवास केला।
असा रामचंद्र आदरे पुजीला।।
राक्षसा करुनी खंडण मंडन।
तेजे तळपे राम कैवल्य जाण।।
लक्षुनी पाही रे अंतरी आपणा।
दुर्गुणी भरला काम क्रोध नाना।।
रिक्त करुनिया गुणदोष सारे।
श्रीराम स्थापना वेगेशी करारे।।
राम नाम ध्याता एकरुप झाला।
मनाच्या गाभारा श्रीराम ठसला।।
विश्वस्वप्न वाटे स्थिति आरुढला।
ब्रह्म ऐक्य झाला स्वरुपी निमाला।।
राम नाम घेता कोण वाया गेला।
गर्वे अधांतरी उगाच सांडला।।
स्मरी सिताकांत कौसल्या नंदना।
अति आदरे पुजी वल्लभ राणा।।
रामनामी विश्व मृगजळ वाटे।
तुर्यातितवस्था अंतरी प्रगटे।।
हीच योगियांची ब्रहमानंद टाळी।
सदैव निमग्न राही चंद्रमौळी।।
प्रेमे स्नेहभरे पुजावे तयाशी।
अति आदरे तोषवावे प्रभुशी।।
सख्य जोडता भय लोपले मनी।
चराचरी त्याचा वास राही गुणी।।
चराचरी भक्त एकरुप झाला।
ब्रह्म ऐक्य रसी न्हाऊनी निघाला।।
विश्व त्याचे घर प्रभुचे निवास।
नाही भेद मनी अखंड स्थितीस।।
राम नाम घेता ब्रह्मरुप झाला।
जन्म मरणाचा फेरा चुकविला।।
ब्राह्मी दृढावली जीव शिव ऐक्य।
दृढ मना भासे एकची अनेक।।
जे जे काही एक गतिमान आहे।
ते ते श्रीराम वास करुनी आहे।।
घेई ध्यानी मनी परब्रह्म रुप।
सहज चिंतनी प्रगटे स्वरुप।।
अरे मानवा उठ संदेह सांडी।
रुप सगुण जोडी विकल्प मोडी।।
ज्ञानदृष्टी फाकवी जाणुन घेई।
वसले चैतन्य सर्व भूतां ठाई।।
आहे श्रीराम माझा कोदंडधारी।
काळाते थरारी भक्ता तारी तारी।।
त्याचे गुण गाता जिव्हा थकेना।
नमस्कार माझा तुज नारायणा।।
भटकु नको रे उगा तीर्थ नाना।
पडे बंधनी काम करी ठणाणा।।
स्मरी वेगु मनी भक्त प्रतिपाळा।
सदा संकटी धावे प्रभु कळाळा।।
ठायाची बैसोनी अंतरी लक्षी रे।
प्रभुची स्थापना ह्रदयी करारे।।
स्मरा सिताकांत त्याचे गुण गाता।
नमस्कार तुज कृपाळु अनंता।।
कृपाळु मवाळु स्नेहाळु दयाळु।
प्रभू रघुविर असे घननिळु।।
त्याशी स्मरीता बाणे वैराग्य जीवा।
हसत मुखाने करी ऐक्य शिवा।।
घाल उडी नको पाहू काळ वेळ।
प्रभू रामराजा रक्षी सर्व काळ।।
तया आठविता सख्य वाटे जीवा।
कृपाळु केशवा गोविंद माधवा।।
दत्ता झाला वेडा पायी मिठी केली।
मन पुष्पांजली प्रभुशी वाहिली।।
तेणे तुष्टला रे सखा घनःश्याम।
अति आदरे घडे जीवा आराम।।
..... डी सिताराम