आत्मा जाणावा विवेके। ज्ञानाज्ञान कौतुके।
अव्दैताचे रुप फिके। आत्मज्ञानयाचे नाव।।
झळाळे सम्यक ज्ञान। समतेची मति जाण।
तटस्थचित्त होऊन। आत्मज्ञान याचे नाव।।
आत्मा धवळ असे जाण। नसे विकार अधिन।
चिदाकाशाची ही खूण। आत्मज्ञान याचे नाव।।
द्रष्टा-दृष्य-दर्शन। जैशी कर्पुर ज्योत जाण।
वेगेसी गेली नासोन। आत्मज्ञान याचे नाव।।
शमदमादि योजना करावी। ब्रह्मैक्याची कास धरावी।
सुमति कदा न संडावी। आत्मज्ञान याचे नाव।।
नाश करा कर्माशय। जन्मोजन्मीचे ते भय।
तोडा भवभ्रम न्याय। आत्मज्ञान याचे नाव।।
नका धरु एकपण। सांडी अवगुण लक्षण।
मनी राहो शुद्धज्ञान। आत्मज्ञान याचे नाव।।
आत्मैक्याची वृत्ती जाण। ओळख आपणा आपण।
करा ईशवरी चिंतन। आत्मज्ञान याचे नाव।।
ब्रह्मत्राटक करावे। मनी स्वरुपी भरावे।
सर्व अहित त्यजावे। आत्मज्ञान याचे नाव।।
करा विकार शमन। उद्धरी आत्म्याशी जाणुन।
पहावे करावे मौन। आत्मज्ञान याचे नाव।।
मनी असावे निर्भय। करा दुर्बलांची सोय।
मति ठेवावी सुन्याय। आत्मज्ञान याचे नाव।।
चराचरात ईश्वर। व्हारे जाणुनी निर्भर।
नको देवावरी भार। आत्मज्ञान याचे नाव।।
दृष्य प्रपंचाचे भुत। करुनिया वरी मात।
जाणुनिया सुषुप्तीत। आत्मज्ञान याचे नाव।।
दत्ता झाला सावचित्त। क्षणभंगुरत्व ज्ञात।
करी आपुलाले हित। आत्मज्ञान याचे नाव।।
........... डी सिताराम
अव्दैताचे रुप फिके। आत्मज्ञानयाचे नाव।।
झळाळे सम्यक ज्ञान। समतेची मति जाण।
तटस्थचित्त होऊन। आत्मज्ञान याचे नाव।।
आत्मा धवळ असे जाण। नसे विकार अधिन।
चिदाकाशाची ही खूण। आत्मज्ञान याचे नाव।।
द्रष्टा-दृष्य-दर्शन। जैशी कर्पुर ज्योत जाण।
वेगेसी गेली नासोन। आत्मज्ञान याचे नाव।।
शमदमादि योजना करावी। ब्रह्मैक्याची कास धरावी।
सुमति कदा न संडावी। आत्मज्ञान याचे नाव।।
नाश करा कर्माशय। जन्मोजन्मीचे ते भय।
तोडा भवभ्रम न्याय। आत्मज्ञान याचे नाव।।
नका धरु एकपण। सांडी अवगुण लक्षण।
मनी राहो शुद्धज्ञान। आत्मज्ञान याचे नाव।।
आत्मैक्याची वृत्ती जाण। ओळख आपणा आपण।
करा ईशवरी चिंतन। आत्मज्ञान याचे नाव।।
ब्रह्मत्राटक करावे। मनी स्वरुपी भरावे।
सर्व अहित त्यजावे। आत्मज्ञान याचे नाव।।
करा विकार शमन। उद्धरी आत्म्याशी जाणुन।
पहावे करावे मौन। आत्मज्ञान याचे नाव।।
मनी असावे निर्भय। करा दुर्बलांची सोय।
मति ठेवावी सुन्याय। आत्मज्ञान याचे नाव।।
चराचरात ईश्वर। व्हारे जाणुनी निर्भर।
नको देवावरी भार। आत्मज्ञान याचे नाव।।
दृष्य प्रपंचाचे भुत। करुनिया वरी मात।
जाणुनिया सुषुप्तीत। आत्मज्ञान याचे नाव।।
दत्ता झाला सावचित्त। क्षणभंगुरत्व ज्ञात।
करी आपुलाले हित। आत्मज्ञान याचे नाव।।
........... डी सिताराम