विश्वरुप हरि, जवळी अंतरी।
राहे चराचरी, कौतुकाने।।
हरि नये दाविता, बोलता सांगता।
परि एक चित्ता अनुभवा।।
शुद्ध प्रेमे करी, सुखाचा विलास।
संसाराचा भास, दुर करी।।
दत्ता म्हणे यांशी, जाणावा सत्वर।
मन हे माघार पहुडले।।
हरिरंगी मन, रंगले रंगले।
हरिशी देखीले, अंतर्बाह्य।।
धाव ही खुंटली, बाहेरी बाहेरी।
हरि नाही दुरी, ह्रदयात।।
मन पांगुळले, विषय अंतरी।
सकल श्रीहरि, व्यापलासे।।
दत्ता भोगतसे, भक्तिचा आनंद।
विठ्ठलाचा छंद, जडे जीवा।।
......डीसिताराम
राहे चराचरी, कौतुकाने।।
हरि नये दाविता, बोलता सांगता।
परि एक चित्ता अनुभवा।।
शुद्ध प्रेमे करी, सुखाचा विलास।
संसाराचा भास, दुर करी।।
दत्ता म्हणे यांशी, जाणावा सत्वर।
मन हे माघार पहुडले।।
हरिरंगी मन, रंगले रंगले।
हरिशी देखीले, अंतर्बाह्य।।
धाव ही खुंटली, बाहेरी बाहेरी।
हरि नाही दुरी, ह्रदयात।।
मन पांगुळले, विषय अंतरी।
सकल श्रीहरि, व्यापलासे।।
दत्ता भोगतसे, भक्तिचा आनंद।
विठ्ठलाचा छंद, जडे जीवा।।
......डीसिताराम