नाशिवंत हा संसार।
नाम हेचि जिवा सार।।
आवडिने नाम घ्यावे।
सदा सर्वकाळ ध्यावे।।
हेचि औषध सर्वांशी।।
भवरोग तुडविशी।।
दत्ता म्हणे सार सार।
करी संसारी उद्धार।।
भारवाही मी संतांचा।
बोलतसे त्यांची वाचा।।
मज नसे आत्मज्ञान।
असे हिनाहुनी हीन।।
बाप कौतुके शिकवी।
तेचि लेकुरे वदवी।।
दत्ता शरण संतांशी।
काया अर्पियेली त्याशी।।
काम क्रोध दंभे, छळिताती सारे।
पुढे अहंकारे, माज केला।।
मी-तू पण माझे, संसारी भ्रमलो।
धनापाठी गेलो, वाया जनी।।
विश्वस्वप्न सत्य, दृढ वाटे मना।
चित्त ही वासना, नाशियेली।।
जन्मोजन्मी कर्म, भोग पाठी आले।
मज भ्रमविले, याच जन्मी।।
दत्ता म्हणे जीव, होई कासाविस।
संसाराचा भास, जीव घेई।।
झालो मी आंधळा गा। संसारी भ्रमतांना।।
गात्रे शक्ति हरपली। पुढे मज चालवे ना।।
कोणीतरी हात धरा। मार्ग मज दाखवा ना।
काया ही थकली गा। दुःख भोगितो नाना।।1।।
आंधळ्याशी दया करा। भीक मागितो तुम्हा।
तुम्ही संत मायबाप। द्यावे अभय आम्हा।।धृ।।
विषय सुखे छळती गा। काम वासना भारी।।
क्रोधे मी पंगु झालो। कोण यातुन तारी।।
जन्मभोगे घात केला। आलो दुःखाच्या दारी।।
ज्ञान, ध्यान कोठे गेले। बुद्धि भ्रमियेली भारी।।2।।
साधूसंता निंदा केली। जीव्हा थोर बाटली गा।।
नाही आठवला देव मनी। नाही केले तीर्थाटण गा।।
दानपुण्य करवेना। माय बापा छळले गा।।
विकारांचा दास झालो। चित्त माझे नागवले गा।।3।।
जन्म मृत्यू चक्र थोर। सारे भरडुनी जाती।।
माझे माझे म्हणणारे। कालप्रवाही पडती।।
दुःख भ्रांति पडे जीवा। नाही तयास गति।।
परनिंदे भ्रष्ट झालो। नासे कर्तव्य जगती।।4।।
दत्ता म्हणे जागे व्हारे। प्रभु सोयरा करा।।
नाम मुखी घेऊनिया। जन्म पावन करा।।
पुन्हा नको जन्मभोग। चुकवी येरझारा।।
हाचि जन्म शेवटला। बापा परत फिरा।।5।।
.....डीसिताराम
नाम हेचि जिवा सार।।
आवडिने नाम घ्यावे।
सदा सर्वकाळ ध्यावे।।
हेचि औषध सर्वांशी।।
भवरोग तुडविशी।।
दत्ता म्हणे सार सार।
करी संसारी उद्धार।।
भारवाही मी संतांचा।
बोलतसे त्यांची वाचा।।
मज नसे आत्मज्ञान।
असे हिनाहुनी हीन।।
बाप कौतुके शिकवी।
तेचि लेकुरे वदवी।।
दत्ता शरण संतांशी।
काया अर्पियेली त्याशी।।
काम क्रोध दंभे, छळिताती सारे।
पुढे अहंकारे, माज केला।।
मी-तू पण माझे, संसारी भ्रमलो।
धनापाठी गेलो, वाया जनी।।
विश्वस्वप्न सत्य, दृढ वाटे मना।
चित्त ही वासना, नाशियेली।।
जन्मोजन्मी कर्म, भोग पाठी आले।
मज भ्रमविले, याच जन्मी।।
दत्ता म्हणे जीव, होई कासाविस।
संसाराचा भास, जीव घेई।।
झालो मी आंधळा गा। संसारी भ्रमतांना।।
गात्रे शक्ति हरपली। पुढे मज चालवे ना।।
कोणीतरी हात धरा। मार्ग मज दाखवा ना।
काया ही थकली गा। दुःख भोगितो नाना।।1।।
आंधळ्याशी दया करा। भीक मागितो तुम्हा।
तुम्ही संत मायबाप। द्यावे अभय आम्हा।।धृ।।
विषय सुखे छळती गा। काम वासना भारी।।
क्रोधे मी पंगु झालो। कोण यातुन तारी।।
जन्मभोगे घात केला। आलो दुःखाच्या दारी।।
ज्ञान, ध्यान कोठे गेले। बुद्धि भ्रमियेली भारी।।2।।
साधूसंता निंदा केली। जीव्हा थोर बाटली गा।।
नाही आठवला देव मनी। नाही केले तीर्थाटण गा।।
दानपुण्य करवेना। माय बापा छळले गा।।
विकारांचा दास झालो। चित्त माझे नागवले गा।।3।।
जन्म मृत्यू चक्र थोर। सारे भरडुनी जाती।।
माझे माझे म्हणणारे। कालप्रवाही पडती।।
दुःख भ्रांति पडे जीवा। नाही तयास गति।।
परनिंदे भ्रष्ट झालो। नासे कर्तव्य जगती।।4।।
दत्ता म्हणे जागे व्हारे। प्रभु सोयरा करा।।
नाम मुखी घेऊनिया। जन्म पावन करा।।
पुन्हा नको जन्मभोग। चुकवी येरझारा।।
हाचि जन्म शेवटला। बापा परत फिरा।।5।।
.....डीसिताराम