।।भारूड।।
जाणा खोटा रे खोटा। नाही गुरूचा बेटा।।धृ।।
गर्वात राही सिद्धि मिळुनी। मुखी बोले ते होई जाण।
स्वये कामात राही लोळुन। लोका शिकवी ब्रह्मज्ञान।।
कुंडलिनीस जागवुन। ब्रह्मरंध्रा नेली जाण।
स्वये वासना अधिन। राहे वैराग्य भासवुन।।
प्राणीमात्रा भेद करून। नाही ओळखे नारायण।
उच्च नीच भाव ठेऊन। तिरस्कारले सारे जन।।
साही शास्रे केली पाठ। चारी वेद मुखी म्हणत।
झाला पंडित विख्यात। नाही तुटे कामिनी संगत।।
दत्ता म्हणे जो ओळखे सद्वस्तुशी। जो जाई झणी गुरूपाशी।
जेणे त्यागिले देहभोगासी। तोची देखे परब्रह्मासी।।
तोचि मोठा रे मोठा। जाण गुरूचा बेटा।।
.....डीसिताराम
गर्वात राही सिद्धि मिळुनी। मुखी बोले ते होई जाण।
स्वये कामात राही लोळुन। लोका शिकवी ब्रह्मज्ञान।।
कुंडलिनीस जागवुन। ब्रह्मरंध्रा नेली जाण।
स्वये वासना अधिन। राहे वैराग्य भासवुन।।
प्राणीमात्रा भेद करून। नाही ओळखे नारायण।
उच्च नीच भाव ठेऊन। तिरस्कारले सारे जन।।
साही शास्रे केली पाठ। चारी वेद मुखी म्हणत।
झाला पंडित विख्यात। नाही तुटे कामिनी संगत।।
दत्ता म्हणे जो ओळखे सद्वस्तुशी। जो जाई झणी गुरूपाशी।
जेणे त्यागिले देहभोगासी। तोची देखे परब्रह्मासी।।
तोचि मोठा रे मोठा। जाण गुरूचा बेटा।।
.....डीसिताराम
कोणत्याही टिप्पण्या नाहीत:
टिप्पणी पोस्ट करा